Wednesday 1 January 2014

एक सफ़दर- अनेक सफ़दर- हरेक सफ़दर

एक सफ़दर- अनेक सफ़दर- हरेक सफ़दर

सफ़दर हाशमी- शहादत के पच्चीस बरस; “मजदूर वर्ग और संस्कृति”

सांस्कृतिक वर्चस्व का हमला और तीखा और सर्वग्रासी हुआ है वैश्वीकरण के इस दौर में


सांस्कृतिक अभिव्यक्ति वर्ग संघर्ष में एक क्षमतावान, कारगर व मारक जरिया है। यह अगर शासक वर्गों के लिये खतरनाक नहीं होता तो वे सफदर हाशमी को नहीं मारते। एम.एफ.हुसैन की गैलरी पर तोड़-फोड़ नहीं करते, वली दकनी की मजार को जमीदोंज नहीं करते, ईराक में बगदाद की हजारों साल पुरानी लाइब्रेरी से लेकर मुम्बई की भण्डारकर लाइब्रेरी तक को आग नहीं लगाते, बुद्ध के स्तूपों और ग्रन्थों के पीछे लाठी फावड़े लेकर नहीं दौड़ते।

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