Showing posts with label पासवान. Show all posts
Showing posts with label पासवान. Show all posts

Monday 3 March 2014

सत्ता का चुंबन बेहद आत्मघाती होता है।

दो दलीय अमेरिका परस्त कॉरपोरेट बंदोबस्त अस्मिताओं का महाश्मशान!

जिनके प्राण भँवर ईवीएममध्ये बसै, उनन से काहे को बदलाव की आस कीजै?

परिवार, निजी सम्बंधों, समाज, राजनीति और राष्ट्रव्यवस्था में सारा कुछ एकपक्षीय है सांस्कृतिक विविधता और वैचित्र्य के बावजूद। हम चरित्र से मूर्ति पूजक बुतपरस्त लोग हैं। हम राजनीति करते हैं तो दूल्हे के आगे पीछे बंदर करतब करते रहते हैं। साहित्य, कला और संस्कृति में सोंदर्यबोध का निर्मायक तत्व व्यक्तिवाद है, वंशवाद है, नस्लवाद है, जाति वर्चस्व है। हमारा इतिहास बोध व्यक्ति केंद्रित सन तारीख सीमाबद्ध है।
......Read More on

लोकतंत्र के नाम पर लोकतंत्र का छद्म ही जी रहे हैं हम

http://www.hastakshep.com/intervention-hastakshep/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6/2014/03/03/%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AE-%E0%A4%AA%E0%A4%B0-%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%A4

Wednesday 26 February 2014

वे बहुजन कारोबारी हैं।

मुद्दा जाति उन्मूलन का है, सत्ता में भागेदारी नहीं।

तमाम बहुजन चिन्तक और मसीहा कॉरपोरेट राज में बुराई नहीं देखते और इस आक्रामक ग्लोबीकरण को बहुजनों के लिये स्वर्णकाल मानते हैं।
कांशीराम जी ने जो सत्ता की चाबी ईजाद कर ली है, उसके बाद से निरंतर अंबेडकर हाशिये पर जाते रहे हैं और उनके जाति उन्मूलन के एजेण्डा अता पता नहीं है। सोशल इंजीनियरिंग की चुनावी राजनीति, अस्मिता और पहचान को पूँजी बनाकर पार्टीबद्ध राजनीति कॉरपोरेट राज का पर्याय बन गयी है।
Read full article on the link given below

चिरकुट प्रजाति के बहुजन कारोबारी

http://www.hastakshep.com/intervention-hastakshep/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6/2014/02/24/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%9F-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AC%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%9C%E0%A4%A8-%E0%A4%95