दंगों की राजनीति समझने के लिए एक बेहतरीन आलेख
......
अगर हमारा लोकतंत्र सचमुच साम्प्रदायिकता से लड़ना चाहता है तो उसकी अदालतों को इन सच्चाईयों को स्वीकार करना ही होगा कि 1984 में सिख मारे गए, कंधमाल में इसाई मारे गए, 1993 और 2002 में मुसलमान मारे गए और हमलावर हमेशा संघ परिवार के प्रभाव वाले साम्प्रदायिक हिंदू थे, जिन्हें सहिष्णुता आधारित धर्मनिरपेक्षता में यकीन रखने वाले आम हिंदुओं की खामोश हिमायत प्राप्त थी। यह स्वीकारोक्ति (डायग्नोसिस) साम्प्रदायिकता के खिलाफ ईमानदार लड़ाई के लिए सबसे निर्णायक है।
Read More....
......
अगर हमारा लोकतंत्र सचमुच साम्प्रदायिकता से लड़ना चाहता है तो उसकी अदालतों को इन सच्चाईयों को स्वीकार करना ही होगा कि 1984 में सिख मारे गए, कंधमाल में इसाई मारे गए, 1993 और 2002 में मुसलमान मारे गए और हमलावर हमेशा संघ परिवार के प्रभाव वाले साम्प्रदायिक हिंदू थे, जिन्हें सहिष्णुता आधारित धर्मनिरपेक्षता में यकीन रखने वाले आम हिंदुओं की खामोश हिमायत प्राप्त थी। यह स्वीकारोक्ति (डायग्नोसिस) साम्प्रदायिकता के खिलाफ ईमानदार लड़ाई के लिए सबसे निर्णायक है।
Read More....