डॉ० दया दीक्षित ने रामविलास जी के विपुल लेखन में‘भारतीय संस्कृति और हिन्दी प्रदेश’ के महत्व को चिन्हित करते हुये कहा कि वह देश के सांस्कृतिक इतिहास का प्रामाणिक दस्तावेज़ है। उन्होंने साम्प्रदायिक मनोवृत्ति के साथ इतिहास को देखने की साम्राज्यवादी दृष्टि की आलोचना की और चेताया। रामविलास जी लोकसंस्कृति के अनिवार्य अंग के रूप में उसे श्रम की संस्कृति से जोड़ते हैं। डॉ० दया ने रामविलास जी के अभिन्न मित्र प्रख्यात साहित्यकार अमृतलाल नागर के संस्मरणों के ज़रिये कई हृदयस्पर्शी प्रसंगों का उल्लेख किया।
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http://www.hastakshep.com/hindi-news/literary-activities/2013/10/24/प्रतिरोध-की-चेतना-के-अनूठ
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