आदिवासी समाज अपने परम्परागत अधिकारों एवम जल, जंगल और जमीन की अभिरक्षा के
लिये डंके की चोट पर सत्तासीन सम्प्रभु वर्ग को चुनौतियाँ दे रहा है। उनकी
ओर से एक अविराम संघर्ष जारी है, निश्चित रूप से ये हाशिए की आवाज है जो
अलग अलग स्थानों पर बिखरा हुआ है। कहीं इसकी गति तेज है, तो कहीं अन्दर-
अन्दर सुलग रहा है, आज जरूरत इनको एक मंच प्रदान करने की है और तीसरे
मोर्चे के कद्रदान इनकी आवाज नहीं बन सकते.... Read More
कॉरपरेट जगत का पैसा और हाशिये की वकालत एक साथ तो नहीं हो सकती | HASTAKSHEP
Sunday, 26 January 2014
Saturday, 25 January 2014
सिद्धान्तहीन राजनीति और नकारात्मक आलोचनाओं का गणतंत्र ! | HASTAKSHEP
यह सदैव याद रखा जाना चाहिए कि पाकिस्तान की फौजी तख्ता पलट की तरह कांग्रेस सत्ता में कभी नहीं आई। जनता ने बार-बार चुना, यह जनादेश का अपमान ही होगा कि चुनी हुयी सरकारों को सिर्फ इसलिये गाली दी जाये कि ‘काश हम सत्ता में क्यों न हुये‘?
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सिद्धान्तहीन राजनीति और नकारात्मक आलोचनाओं का गणतंत्र ! | HASTAKSHEP
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सिद्धान्तहीन राजनीति और नकारात्मक आलोचनाओं का गणतंत्र ! | HASTAKSHEP
Thursday, 23 January 2014
सांस्कृतिक आतंकवाद का नया चेहरा “आप” | HASTAKSHEP
अगर अंतर्राष्ट्रीय सम्बंधों की बात एकबारगी न भी की जाए तो सोमनाथ भारती को भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के तहत कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार मिल गया ? भारती यह भूल गए कि वे दिल्ली सरकार के कानून मंत्री है, पुलिस कमिश्नर नहीं। आखिर उन्हें अपनी हैसियत तो बतानी ही चाहिए कि किस हैसियत से वह पुलिस को हुक्म दे रहे थे और विदेशी छात्राओं को बंधक बना रहे थे। भारती की हरकत हर दृष्टि से अपराध ही है। बेहतर तो यही होगा कि केजरीवाल स्वयं उन्हें अपने मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर समूचे राष्ट्र से, विदेशी छात्राओं से बिना शर्त माफी माँगें। लेकिन केजरीवाल तो सियासी टोने-टोटकों में परंपरागत राजनीतिक दलों से बहुत आगे निकल गए।
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सांस्कृतिक आतंकवाद का नया चेहरा “आप” | HASTAKSHEP
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सांस्कृतिक आतंकवाद का नया चेहरा “आप” | HASTAKSHEP
Sunday, 19 January 2014
क्या थम जाएंगी अब किसानों की आत्महत्याएं | HASTAKSHEP
यह छिपी बात नहीं है कि गांव से लेकर शहरों तक अवैध साहूकारी सिर्फ इसलिए फल-फूल रही है, क्योंकि इसके सिर पर हमेशा राजनीतिक हाथ रहा है। बल्कि राजनीतिक लोग खुद यही काम करते रहे हैं। कुछ साल पहले विदर्भ के विधायक दिलीप सानंदा के पिता के खिलाफ भी साहूकारी के आरोप लगे थे और मामले को दबाने की कोशिश करने का आरोप तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख पर आया था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार पर दस लाख का जुर्माना भी लगाया था। Read Morte on hastakshep.com
क्या थम जाएंगी अब किसानों की आत्महत्याएं | HASTAKSHEP
क्या थम जाएंगी अब किसानों की आत्महत्याएं | HASTAKSHEP
Saturday, 18 January 2014
गुरू गोलवलकर को त्याग दिया मोदी ने | HASTAKSHEP
गुरू जी तो हमारे संविधान की प्रासंगिकता पर भी प्रश्नचिन्ह लगाया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि आरएसएस, भारत के संघीय ढाँचे के विरूद्ध है। उनकी किताब ‘बंच ऑफ थाट्स’या ‘विचार नवनीत’में पूरा एक अध्याय है जिसका शीर्षक ही है “एकात्मक शासन की अनिवार्यता” Read More on
गुरू गोलवलकर को त्याग दिया मोदी ने | HASTAKSHEP
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Saturday, 11 January 2014
आधी रात में ही अयोध्या के गांधी युगकिशोर शरण शास्त्री रिहा
अंततः हस्तक्षेप.कॉम और देश भर के सामाजिक कार्यकर्ताओं की मुहिम रंग लाई। घबराए फैजाबाद जिला प्रशासन ने आधी रात में ही अयोध्या के गांधी युगकिशोर शरण शास्त्री को रिहा कर दिया। .... आगे पढ़ें
आधी रात में ही अयोध्या के गांधी युगकिशोर शरण शास्त्री रिहा
Friday, 10 January 2014
बदलनी होगी महिलाओं के प्रति सोच
समाज में अन्याय, अत्याचार बढ़ा है। इसमें सभी शामिल हैं। चाहे फिर वे कानून बनाने वाले हों, उसका पालन करने वाले या उसका शिकार बनने वाले आम लोग। जाहिर है कि यह प्रवृत्ति किसी भी समाज के लिये घातक है। लड़कियों के मामले में तो जब तक निर्भया जैसी कोई घटना न हो, लोग घरों से बाहर निकल ही नहीं पाते.... Read More on
बदलनी होगी महिलाओं के प्रति सोच
Wednesday, 1 January 2014
एक सफ़दर- अनेक सफ़दर- हरेक सफ़दर
एक सफ़दर- अनेक सफ़दर- हरेक सफ़दर
सफ़दर हाशमी- शहादत के पच्चीस बरस; “मजदूर वर्ग और संस्कृति”
सांस्कृतिक वर्चस्व का हमला और तीखा और सर्वग्रासी हुआ है वैश्वीकरण के इस दौर में
सांस्कृतिक अभिव्यक्ति वर्ग संघर्ष में एक क्षमतावान, कारगर व मारक जरिया है। यह अगर शासक वर्गों के लिये खतरनाक नहीं होता तो वे सफदर हाशमी को नहीं मारते। एम.एफ.हुसैन की गैलरी पर तोड़-फोड़ नहीं करते, वली दकनी की मजार को जमीदोंज नहीं करते, ईराक में बगदाद की हजारों साल पुरानी लाइब्रेरी से लेकर मुम्बई की भण्डारकर लाइब्रेरी तक को आग नहीं लगाते, बुद्ध के स्तूपों और ग्रन्थों के पीछे लाठी फावड़े लेकर नहीं दौड़ते।
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